लगता है की हमारी सरकार की नपुंसक हो गई है| यह बात बहुत सारे उदाहरण से पता चलता है| जिस नक्सली के प्रति हमारी सरकार इतनी उदारता से पेश आ रही है उसे "हमारे अपने" (भटके हुए युवा) बता रही है वही इतनी बर्बरता ए़व बेरहमी पूर्वक हमारी पुलिश के जवानो को मौत के घाट उतार रही है| वह बेगुनाह जनता जो रेलों में सफर करती है उसने क्या बिगारा है की वह कभी रेल को उड़ा देते तो कभी पटरी को उड़ा कार बड़ी घटना को अंजाम देते है| ये नक्सली हमारी आतंरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन गए है| इसमें एक तरह से हमारी सरकार के माननीय मंत्री सब की भी मिलीभगत है| जब कभी सरकार सी सख्ती दिखाने का प्रत्यन करती है तो हमारी माननीय रेल मंत्री जी को लगता है की सरकार उसे ही हटाने के लिए योजना बनाने लगी है.और वह हो-हल्ला शुरू कार देती है की नक्सली के खिलाफ पुलिश का प्रयोग बंद हो अदि-अदि|शायद ममता दीदी नक्सली के सहयोग से ही बंगाल में सरकार बनाना चाहती है तभी तो लालगढ़ में नक्सलीयों से लोहा ले रहे जवानो के खिलाफ वह रैली निकालती है |हमारी सरकार नक्सलियों को बड़ा खतरा बताती है जबकि उसी के सहयोगी सशत्र बल के खिलाफ सडको पर रैलियां करती है |लगता है की सरकार को सिर्फ बात बनाना ही आता है जिस प्रकार वह ममता बनर्जी के प्रति असहाय नजर आती है |यह नपुंसको के लिये शोभनीय है|यह सरकार अपने सहयोगी से जब नहीं निपट सकती तो यह नक्सलियों से कैसे निपटेंगी|
दूसरा उदहारण यह है की हाल में ही कुछ दिन पहले सरकार की नगरी यानि उसकी नाक के नीचे दिल्ली में एक सम्मलेन आयोजित किया गया –बिषय था “आजादी एक मात्र रास्ता“ में कट्टरपंथी नेता सैयद साह गिलानी का विचार गौर करने लायक था| उसी सम्मलेन में भारत की जानी मानी लेखिका अरुंधती राय के भी विचार बड़े अच्छे थे| इन दोनों का एक ही मत था कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं है यानि उसे पाकिस्तान और चीन के लिए छोड़ दिया जाय|वह कश्मीर जिसकी आत्मा भारत में बसती है|कुछ कमीने टाइप के नेताओ के कारन भारत की अखंडता पर आच आ सकती है|आज सिर्फ पाकिस्तान ही कह रहा है की कश्मीर हमारा है बाद में पूरा विश्व कहने लगेगा क्योकि जब कुछ भारतीय ही यह कह रहे है तो शायद सही हो| क्या सरकार इन पर देशद्रोह का मुकदमा नहीं चला सकती जिनको जो मन में आये वह वही बोलने लगे | क्या यही हमारी संविधान ने “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” में यही कहा है की आप राष्ट्र विरोधी बयान देने के लिए स्वतंत्र है|नहीं यह नहीं कहा गया है
|जब यह सरकार चुपचाप इनके भाषण को सुनती रही तो इनसे नपुंसकता वाला कम क्या होगा|
तीसरा उदहारण यह है की हमारी सरकार एक पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब की सेवा में प्रतिदिन लाखोँ रूपये खर्च करती है|क्या यह जायज है |यह पैसा बर्बाद नहीं किया जा रहा है |जब सारी दुनिया उसे पाकस्तानी आतंकवादी मान चुकी है तो उसे क्यों नहीं फंसी पर लटका दिया जाता है |बेकार का झंझट भी खतम होगा |उसे 10-20 साल की कैद की सजा देकर क्या होगा |यदि फांसी भी होगी तो राष्ट्रपति के पास अर्जी लगाकर चुपचाप बचा रहेगा |कसाब ने तो कभी पुलिसवालों के साथ हाथापाई की तो कभी टी. भी. कैमरे पर थूक दिया आब वह भारतीय न्यापालिका पर ही संदेह जाहिर करता है |आब वह अपना मामला अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाना चाहता है|सरकार की होशियारी देखिये एक आतंकवादी के लिए इतना खर्च उपर से उसके लिए वकील वाह रे हमारी सरकार |
अत: अब भी हमारी सरकार को चाहिए की वह नक्सलीयों तथा आतंकवादी के खिलाफ कठोर करवाई करे तथा इसे धरातल पर उतारने के लिए अपने सहयोगी पर लगाम कसने होंगे आन्यथा वही होगी “ढाक के तीन पात” हमारी नपुंसक सरकार |
1 comments:
It looks like that the problem lies with the mentality of getting votes,no matter how it comes. But, the bigger issue doesn't lie merely in getting votes,we actually don't know what should be our policy in dealing with these issues,whether the matter is merely an extension of THE RIGHT TO EXPRESSION guaranteed by our constitution. I have an opinion that the concept of integrity of INDIA comes first. When India wont remain there,what would be the meaning of even Indian Constitution either..
And my advice to the writer of this article is ..please don't use
words like "kaminey".
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